कोरबा : स्विफ्ट डिजायर फर्जी नामांतरण मामले में जिला अधिकारी की मौन स्वीकृति? बच रहे बयान देने से
ओमप्रकाश साहू
कोरबा : जिला परिवहन कार्यालय कोरबा की कार्यप्रणाली पर अनेक प्रकार के सवाल उठ रहे हैं पर अधिकारी किसी भी विषय पर बयान देने से बच रहे हैं हमारी टीम के द्वारा लगातार कोरबा परिवहन अधिकारी शशिकांत कुर्रे का स्विफ्ट डिजायर मामले में बयान लेने का प्रयास किया जा रहा है और वह किसी भी प्रकार का बयान देने से बच रहे हैं आज जब हमारे प्रतिनिधि उनका बयान लेने पहुंचे तब वह ऑफिस में अनुपस्थित थे लगभग 2 घंटे बाद अधिकारी अपने कार्यालय पहुंचे और उन्होंने बाइट देने से मना कर दिया, उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से मना कर दिया और हमारे प्रतिनिधि को यह कहां की मैंने ऊपर काबरा साहब से बात कर लिया है और इस विषय पर हम लेटर के माध्यम से अपना बात रखेंगे।
क्या शशिकांत कुर्रे मीडिया को धमकाने का प्रयास कर रहे थे या फिर किसी भी तरह के बयान देने से अपने आप को बचा रहे हैं, इतने संवेदनशील मामले पर भी कोरबा डीटीओ का बयान ना आना क्या उन्हें प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त हो चुका है या फिर हो मीडिया को गुमराह कर रहे हैं।
आइए समझते हैं इस पूरे फर्जी नामांतरण मामले को
कोरबा जेलगांव निवासी भागीरथी यादव ने स्विफ्ट डिजायर चोलामंडलम फाइनेंस कंपनी से फाइनेंस करवाई थी जोकि वर्ष 2020 में एनडीपीएस एक्ट के तहत गांजा की तस्करी के मामले में दीपका थाना क्षेत्र अंतर्गत पकड़ा गई थी उक्त कार्रवाई में न्यायालय ने वाहन से संबंधित सभी दस्तावेजों के ओरिजिनल कॉपी को न्यायालय में जमा करने को कहा और सशर्त सुपुर्दनामा भागीरथी यादव को दिया। समय बीतने पर वाहन की किस्त ना पटा पाने पर चोलामंडलम ने गाड़ी को भागीरथी यादव से सरेंडर करवा लिया उसके बाद उक्त वाहन सीजी 12r 4488 की बिक्री कोरिया निवासी वसीम अंसारी को कर दी गई। नियम अनुसार उक्त वाहन का नामांतरण भागीरथी यादव से चोलामंडलम फाइनेंस के नाम होना था फिर चोलामंडलम वसीम अंसारी को नामांतरण कराकर वाहन की खरीदी बिक्री की प्रक्रिया को खत्म कर सकती थी । चोलामंडलम की सेल्स टीम ने वाहन के नामांतरण का काम आरटीओ एजेंट संतोष राठौर को दिया और संतोष राठौर ने भागीरथी यादव से सीधे वसीम अंसारी के नाम वाहन का नामांतरण आरटीओ कार्यालय के अधिकारी कर्मचारी के साथ मिलीभगत कर करा दिया। महज कुछ रुपयो की बचत करने के इरादे से इस प्रक्रिया का पालन नही किया गया। या यही इनका तरीका है ये सोचने की बात है।
इस पूरे मामले में रोचक मोड़ तब आता है जब वाहन नामांतरण के लिए ओरिजिनल आरसी बुक की आवश्यकता पड़ती है तब भागीरथी यादव के नाम से शिकायत या सूचना पत्र कोरिया जिला के चर्चा थाना में देकर आरसी बुक की डुप्लीकेट कॉपी जारी कराई जाती है और वाहन नामांतरण की प्रक्रिया को पूरी की जाती है । जिसमे न ही भागीरथी यादव कि सहमती न ही हस्ताक्षर।
सुलगते सवाल
क्या किसी के भी नाम से शिकायत या सूचना पत्र थाने में दिया जा सकता है।
क्या थाने में व्यग्तिगत रूप से उपस्थित होकर आवेदन देना अनिवार्य नही है।
भागीरथी यादव का कहना है की उसके द्वारा आरसी बुक की ओरिजिनल कॉपी न्यायालय में जमा की गई है और उसने कभी भी आरसी बुक के डुप्लीकेट कॉपी को प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार की शिकायत चर्चा थाने में दी है तो फिर किसने भागीरथ यादव के फर्जी हस्ताक्षर करके आरसी बुक के डुप्लीकेट प्रति प्राप्त की?
वाहन के नामांतरण प्रक्रिया में उक्त वाहन का दो बार नामांतरण होना था पहले चोलामंडलम के नाम से फिर क्रेता के नाम से पर । नामांतरण की प्रक्रिया को सीधे पूर्वाहन स्वामी से नवीन वाहन स्वामी के नाम कर दी गई क्यों?
कार्यालय पर गंभीर आरोप लगने पर भी कोरबा डीटीओ शशिकांत कुर्रे क्यों बच रहे हैं मीडिया से और क्यों कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से कर रहे इन्कार?
आरटीओ एजेंट संतोष राठौर RTO के ही कार्यालय में सरकारी कंप्यूटर के आगे बैठकर अपने काम को अंजाम देता हुआ अक्सर दिखाई देता है यह अधिकार उसे किसने दिया?
एजेंट संतोष राठौर द्वारा भागीरथी यादव पूर्व वाहन स्वामी को फोन पर दबाव बनाया गया कि वह कोरबा आरटीओ ऑफिस में आकर अपना बयान दर्ज कराएं कि उन्होंने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे क्यों और किस नियत से फ़ोन किया गया?