Chhattisgarh

SECL कुसमुंडा क्षेत्र में राम कथा का भव्य आयोजन, कथा के तीसरे दिन सीएमडी प्रेम सागर पहुंचे कथा श्रवण करने…. वृंदावन से पधारे प्रख्यात पंडित प्रेम भूषण द्वारा किया जा रहा कथा वाचन…. 

ओम गवेल -9300194100

कोरबा – बीते २ फरवरी से कुसमुंडा क्षेत्र अंतर्गत आदर्श नगर इंदिरा स्टेडियम परिसर में श्री राम कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है जिसमें बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी कथा श्रवण करने पहुंच रहे हैं। कथा वाचन वृंदावन से पधारे महराज श्री प्रेम भूषण जी द्वारा की जा रही है। कथा के दौरान SECL सीएमडी प्रेमसागर धर्मपत्नी के संग कथा सुनने कुसमुंडा पहुंचे,उन्होंने महराज श्री से आशीर्वाद लिया और भव्य कार्यक्रम के लिए जीएम संजय मिश्रा को बधाई दी।

आइए जानते है थोड़ा कथा के बारे में – भारतीय सनातन संस्कृति में यह बार-बार प्रमाणित हुआ है कि जो भी व्यक्ति धर्म पथ पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख भी दूरी बना कर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं चलकर उनके घर पहुंचते हैं।श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि श्री रामचरितमानस में इसका वर्णन है कि जैसे ही माता सीता का विवाह श्री राम जी से हुआ और जब वह मिथिला से चलकर अयोध्या पहुंचे तो सभी प्रकार की खुशियां और ऐश्वर्य चलकर अयोध्या की ओर पहुंच गए। जिस वस्तु का जो उद्गम स्थल होता है, वह अपने उद्गम स्थल की ओर ही पहुंचने का प्रयास करता है। समुद्र से निकलने वाला जल नदियों को माध्यम बनाकर पुनः समुद्र में ही मिलने को प्रयासरत करता है, जबकि समुद्र की ऐसी कोई चाहत या कामना नहीं होती है।

 महाराज श्री ने बताया आम जन जीवन में कहां उठना बैठना है, कहां नहीं जाना है, क्या खाना है? क्या नहीं खाना है किससे कुछ लेना है और किससे कुछ नहीं लेना है आदि-आदि यही तो धर्म है। जब कोई व्यक्ति धर्म पूर्वक धर्मशीलता के जीवन को जीने का प्रयास करता है तो भगवान भी उसकी मदद करते हैं। महाराज श्री ने कहा कि भारत के सनातन समाज में एक बहुत ही गलत धारणा बैठ गई है कि धर्म-कर्म पूजा-पाठ आदि बुढ़ापे में करना चाहिए। लेकिन चौथेपन के उम्र में मनुष्य के कोई न कोई अंग शिथिल हो जाते हैं या कारण काम करने बंद कर देते हैं । ऐसे में हमें करना यह चाहिए कि बचपन से ही इसका अभ्यास हो और युवावस्था में भी हम धर्म कर्म से जरूर जुड़े रहें।महाराज श्री ने कहा कि सनातन समाज में वैसे भी कई प्रकार की विकृतियां आती जा रही हैं और इसके पीछे मूल कारण विवाह व्यवस्था में कई प्रकार की त्रुटियां हैं। परिवार न्यायालयों में अध्ययन करने के बाद यह पता चलता है कि अधिकांश तलाक के मामले प्रेम विवाह करने वालों के ही आते हैं। दूसरे ने प्रश्न किया कि जब प्रेम करने के बाद विवाह किया तो फिर तलाक की स्थिति क्यों आती है? इससे यह प्रमाणित होता है कि यह व्यवस्था हमारे सनातन समाज समाज के हित में नहीं है। विवाह तो शास्त्र सम्मत तरीके से ही होना चाहिए, क्योंकि यह एक संस्कार है। महाराज श्री ने कहा कि भारतीय सनातन परंपरा में माताओं को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। यहां तक कि जब भगवान का भी हम पूजन करते हैं तो सबसे पहले भगवान को त्वमेव माता कहते हैं। माताओं ने सनातन संस्कृति को जीवंत बना रखा है। कितना भजन किया जाए इस प्रश्न के उत्तर में पूज्य महाराज श्री ने कहा कि जब भोजन से छुट्टी नहीं है तो भजन से क्यों छुट्टी चाहिए?भगवान श्री राम की मिथिला यात्रा और धनुषभंग आदि प्रसंगों का गायन करते हुए पूज्य महाराज जी ने कहा किपूज्य श्री ने कहा कि किसी भी कुल में भगत का जन्म तपस्या से ही होता है। मनुष्य का जीवन तप करने के लिए मिला है तप के माध्यम से ही हम अपने धरती पर आने के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं। गंगा जी को धरती पर लाने के लिए राजा भगीरथ की चार पीढ़ियों ने तप किया था। जिस कुल में कोई भगत तपता है, उसी कुल में नए भगत का आगमन भी होता है।

कथा में विशिष्ट अतिथि के रूप में एसईसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक प्रेम सागर मिश्र सपत्नीक उपस्थित हुए। एसईसीएल के महा प्रबंधक संजय मिश्रा, जीएम मार्केटिंग सीबी सिंह, जीएम कोरबा एरिया दीपक पांड्या, दैनिक यजमान वीरेंद्र कुमार और रमेश चंद्र मिश्रा ने व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए गीत और भजनों पर झूमते हुए देखा गया।

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