Chhattisgarh

सकल विश्व की आस्था,विश्वास और मानवता के केंद्र हैं श्रीराम.. संग्राम

सनातन संस्कृति के पुनरूत्थान का महापर्व है अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा

जगदलपुर -inn24( रविन्द्र दास)- 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के स्वर्णिम अवसर पर भारत सहित कई देशों में आयोजित किए जाने वाले अद्भुत विविध कार्यक्रमों ने इस अवसर को न केवल ऐतिहासिक बना दिया है बल्कि युगों युगों तक याद रखी जानी वाली धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में इस विशेष अवसर व शुभ दिन को संरक्षित भी कर दिया है। लगभग 550 वर्षों से चल रहे एक अंतहीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। 124 सालों तक केस चला, 9 साल कोर्ट में बहस हुई तब जाकर चार जजों की बेंच ने 09 नवंबर 2019 को हिंदू पक्ष के दावे को सही मानते हुए कोर्ट का फैसला सुनाया। इस विवाद के इतिहास पर नज़र डालें तो सन 1528 में मुस्लिम आक्रांता बाबर ने मंदिर गिराकर जब मस्जिद बनाई तब से ये विवाद चलता आ रहा था। मंदिर को आक्रमण से बचाने के लिए लाखों सनातनी हिन्दुओं, निहंग सिखों तथा साधू संतों ने अपना सर्वस्व बलिदान दिया। इतिहास में किसी धर्म या आस्था के केंद्र को बचाने के लिए इतना लंबा संघर्ष किसी समुदाय ने किया हो यह उल्लेख नहीं मिलता। प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या का हिन्दुओं व भारतीयों के लिए वही महत्व है जैसा मुस्लिमों के लिए मक्का मदीना, ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी, यहूदियों के लिए यरूशलम तथा सिखों के लिए अमृतसर का है। श्रीराम ने तो मर्यादित जीवन जीने के संस्कार और जीवन के पारिवारिक व सामाजिक संबंधों के महत्व से पूरी मानव जाति को परिचित कराया है। वास्तव में श्रीराम सकल विश्व की आस्था, विश्वास और मानवता के केंद्र हैं और 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाला श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान सही मायने में सत्य सनातन संस्कृति के पुनरूत्थान का महापर्व है। देश विदेश में रहने वाले 110 करोड़ हिन्दुओं और सिखों के लिए इसे शताब्दियों का महापर्व कहें तो गलत नहीं होगा। मंदिर निर्माण के लिए गठित श्री राम मंदिर निर्माण तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 900 करोड़ रुपये दान के रूप में एकत्रित करने का लक्ष्य रखा था और आश्चर्यजनक रूप से 5,500 करोड़ रुपये का दान मिला। लगभग 20 करोड़ लोगों ने दान दिया जिनमें केवल हिंदू ही नहीं सभी धर्मों के लोगों की सहभागिता रही। इसीलिए श्री राम मंदिर निर्माण तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने सभी धर्मों के अनुयायियों को 22 जनवरी के मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण भी भेजा है। सर्वधर्म समभाव की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि सालों से अदालत में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से केस लड़ने वाले इकबाल अंसारी को भी बड़े सम्मान के साथ ट्रस्ट द्वारा कार्यक्रम में आने का न्योता दिया गया है। पुराने रार को भूलकर हिन्दू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष को यदि मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्मान सहित बुलाया है तो इसका खुले मन से स्वागत किया जाना चाहिए परंतु हमारे प्रमुख विपक्षी इंडी गठबंधन को इसमें भी सियासत नजर आ रही है। इकबाल अंसारी ने तो कह दिया वो जरूर जाएंगे पर विपक्षी इंडिया गठबंधन के लोग जाने व न जाने को लेकर अब तक कन्फ्यूज है। कुछ कॉंग्रेसी नेताओं ने मकर संक्रांति को ही रामलला के दर्शन तो कर लिए परंतु वो हिन्दुओं की आस्था पर ये कहकर चोट करना नहीं भूले कि हम 22 जनवरी को बिल्कुल भी नहीं जाएंगे। विपक्षी नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खडगे, अखिलेश यादव, शरद पवार, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव, लालू यादव ने तो इसे बीजेपी और आरएसएस का कार्यक्रम बताकर नहीं जाने का फ़रमान जारी कर दिया। विपक्षी इंडिया गठबंधन अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए चाहे जो तर्क दें पर यह आयोजन तो कोर्ट के आदेश पर मंदिर निर्माण हेतु बने श्रीराम मंदिर निर्माण तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का है और यही सच है। बेहतर होता कि पूरा विपक्ष सदी के इस महा उत्सव में सनातनी हिन्दुओं व भारतीयों के साथ सहर्ष सहभागी होता और उनको सम्भवतः इसका लाभ भी मिलता परंतु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा। वैसे विपक्ष आयोजकों का निमंत्रण ठुकरा भी देता तो भी कोई विशेष बात नहीं थी परंतु विपक्ष ने तो 22 जनवरी के मुहूर्त, आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी के यजमान बनने, अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करने, कुछ शंकराचार्यों के न आने सहित कई सवाल खड़े कर कहीं न कहीं बहुसंख्यक हिंदू समाज की आस्था को चोट पहुंचाने का ही काम किया है। हालांकि उनके सारे सवालों के जवाब पूज्य रामानंदाचार्य संत रामभद्राचार्य तथा पूज्य संत श्री श्री रविशंकर सहित कई साधू संतों ने खुद टीवी पर आकर दिए हैं। खैर, प्रभु श्रीराम विपक्ष को सद्बुद्धि दें। पिछले एक डेढ़ महीनों से रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की चर्चा, अयोध्या धाम पर कवरेज सभी टीवी चैनलों पर छाए हुए हैं। कहीं भजन गाए जा रहे हैं, कहीं दिए जलाये जा रहे हैं, कहीं भंडारे का आयोजन है, कहीं अयोध्या धाम पैदल पहुंचने का प्रयोजन है। कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर मंदिरों की सफाई का अभियान है तो कहीं प्रवचन, यज्ञ, पूजन का अनुष्ठान है। कहीं से लड्डू, कहीं से चावल तो कहीं से भंडारे का राशन अयोध्या धाम भेजा जा रहा है। राम भक्तों में देश के कोने कोने से कुछ न कुछ रामलला के लिए भेजने की होड़ सी मची है। श्रीलंका से माता जानकी की चरण पादुका, नेपाल के जनकपुर से सीता माता का शृंगार व मिठाई, मिथिला से शगुन पूजन की सामग्री अयोध्या भेजी जा रही है। माता कौशल्या की भूमि छत्तीसगढ़ से भी रामलला को भोग लगाने के लिए मीठे स्वादिष्ट चावल की खेप अयोध्या पहुंच चुकी है। ऐसे आयोजन केवल भारत में नहीं हो रहे बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, इटली सहित पूरे विश्व में जहाँ जहाँ भी भारतीय हैं वहाँ वहाँ 22 जनवरी को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।मॉरिशस में तो 22 जनवरी को छुट्टी की घोषणा भी वहाँ की सरकार ने कर दी है, इसके अलावा साउथ कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल में भी इस दिन को उत्सव के रूप मनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। ऐसा लगता है भारत के साथ पूरा विश्व प्रभु श्रीराम के उत्सव में डूबकर राममय हो गया है।
बहरहाल, आलोचकों की परवाह किए बिना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 11 दिनों के कठिन व्रत पर हैं वो जमीन पर सो रहे हैं गौसेवा कर रहे हैं तथा देश के विभिन्न मंदिरों में प्रतिदिन पूजा अर्चना कर एक यजमान के रूप में प्राण प्रतिष्ठा के नियमों का पूर्ण पालन कर रहे हैं। 22 जनवरी को पुनर्वसु नक्षत्र में दिन में 12:30 बजे 84 सेकंड के अभूतपूर्व मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। अपनी आँखों के सामने भारत की साँस्कृतिक व गौरवमयी विरासत को पुनर्स्थापित होते देखना वास्तव में अत्यंत सुखद व अद्भुत अनुभूति होगी। भगवान श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के अयोध्या आगमन पर अब तक एक दिवाली मनती थी अब 22 जनवरी को रामलला की अयोध्या में पुनः प्राण प्रतिष्ठा होने पर पूरे देश में एक और दिवाली मनेगी जो लोगों के मन मस्तिष्क में निःसंदेह एक अमिट छाप छोड़कर जाऐगी।।

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