MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद को लेकर अच्छी खबर इस रेट पर किसानों का MSP पंजीयन शुरू
MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद को लेकर अच्छी खबर इस रेट पर किसानों का MSP पंजीयन शुरू। रबी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए सरकार की ओर से तैयारियां की जा रही है। इसके लिए पंजीयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसी बीच राज्य सरकार ने एमएसपी पर गेहूं की पंजीयन प्रक्रिया में बदलाव किया है।
इसके तहत अब राज्य के किसानों को गेहूं उपार्जन के पंजीयन के लिए तीन प्रतियों में सिकमीनामा का अनुबंध देना होगा। सरकार ने इसी रबी फसल विपणन सीजन से इसे अनिवार्य कर दिया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि क्योंकि किसानों की आड़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपार्जन व्यवस्था का बिचौलियों द्वारा अनुचित लाभ उठाने के प्रयास पर लगाम लगाई जा सके।
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जिला प्रशासन की ओर से भू-बटाईदार हितों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक अनुबंध होने पर ही गेहूं की खरीद के लिए सिकमीनामा पर पंजीयन करने का निर्णय लिया गया है। इस बारे में कलेक्टर कार्यालय की भू-अभिलेख शाखा द्वारा तहसीलदारों एवं नायब तहसीलदारों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर सिकमीनामा अनुबंध की प्रक्रिया से अवगत कराया गया है। बता दें कि मध्यप्रदेश में रबी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए पंजीयन चल रहे हैं। ऐसे में किसानों को पंजीयन प्रक्रिया में बदलाव की जानकारी होनी जरूरी है तो आइये जानते हैं, इसके बारे में पूरी जानकारी।
MSP पर फसल खरीद के लिए पंजीयन के दिशा-निर्देश 2024
प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक भूमि स्वामी और बटाईदार किसानों के बीच मध्यप्रदेश भू-बटाईदार के हितों के संरक्षण अधिनियम 2016 के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित प्रपत्र में हुए सिकमीनामा अनुबंध को ही गेहूं उपार्जन के पंजीयन के लिए मान्य किया जाए। भूमि स्वामी और बटाईदार किसानों द्वारा यह अनुबंध तीन मूल प्रतियों में तैयार किया जाएगा।
MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद को लेकर अच्छी खबर इस रेट पर किसानों का MSP पंजीयन शुरू
भूमि स्वामी को अनुबंध की ये प्रतियां संबंधित पटवारी के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी। पटवारियों को अनुबंध पत्र में वर्णित भूमि का मिलान संबंधित गांव के राजस्व अभिलेख से करना होगा। उन्हें अपने प्रभार वाले क्षेत्र के सभी गांवों के लिए अलग-अलग पंजी संधारित कर अनुबंध पत्रों को दर्ज भी करना होगा। राजस्व अभिलेखों से मिलान होने पर पंजी में दर्ज प्रविष्टि के क्रमांक एवं दिनांक को अनुबंध पत्र में दर्ज कर पटवारी को उन पर अपने हस्ताक्षर करने होंगे तथा इसके बाद संबंधित क्षेत्र के तहसीलदर या नायब तहसीलदार के समक्ष अनुबंध पत्र को अभिप्रमाणन के लिए प्रस्तुत करना होगा।
Minimum Support Price अनुबंध प्रक्रिया
तहसीलदार या नायब तहसीलदार के न्यायालय में अनुबंध पत्रों को दर्ज करने के लिए अलग से पंजी संधारित की जाएगी। इस पंजी में ग्रामवार अलग-अलग पृष्ठ निर्धारित किए जाएंगे। तहसीलदार अथवा नायब तहसीलदार द्वारा अभिप्रमाणन के बाद अनुबंध की एक प्रति उनके न्यायालय में सुरक्षित रखी जाएगी। पटवारी को भी अनुबंध की छाया प्रति अपने पास रखनी होगी। जबकि तीन प्रतियों में हुए अनुबंध की दो प्रतियां भूमि स्वामी को वापस प्रदान की जाएगी।
MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद को लेकर अच्छी खबर इस रेट पर किसानों का MSP पंजीयन शुरू
भूमि स्वामी इनमें से एक प्रति बटाईदार किसान को देंगे। बटाईदार किसान द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल उपार्जन के पंजीयन के लिए यह प्रति सहकारी समितियों में स्थापित पंजीयन केंद्र को अन्य जरूरी कागजातों के साथ प्रस्तुत करनी होगी। इसे पंजीयन केंद्र पर कम्प्यूटर ऑपरेटर द्वारा अपलोड किया जाएगा। इसके बाद सिकमीनामा के आधार पर पंजीयन के लिए बंटाईदार किसान की ओर से प्रस्तुत पत्र की इस प्रति का मिलान तहसीलदार या नायब तहसीलदार न्यायालय में रखी प्रति से किया जाएगा। दोनों प्रतियों का मिलान होने पर ही पंजीयन का सत्यापन किया जाएगा। सत्यापन होने के बाद ही किसान एमएसपी पर उपज का विक्रय कर सकेंगे।
गेहूं उपार्जन के लिए कहां होंगे पंजीयन
जिला प्रशासन की ओर से स्पष्ट किया गया है कि बटाईदार या सिकमी पर खेती करने वाले किसानों का गेहूं के उपार्जन के लिए पंजीयन केवल सहकारी साख समितियों एवं सहकारी विपणन संस्थाओं में ही किया जाएगा। वहीं जिला प्रशासन की ओर से बटाईदार किसानों से आग्रह किया गया है कि उपार्जन के दौरान किसी भी तरह की असुविधा से बचने के लिए तय प्रक्रिया का पालन कर भू-स्वामी के साथ सिकमीनामा का अनुबंध करें और उसके आधार पर ही समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए अपना पंजीयन कराएं।
Minimum Support Price किसानों से तात्पर्य
बटाईदार किसान से तात्पर्य ऐसे किसान से हैं जिनके पास खेती के लिए खुद की भूमि नहीं है और वे जमीदार की भूमि पर खेती करते हैं। ऐसे में जमीदार अपनी खेती की भूमि को बंटाई में दे देता है जिस पर दूसरा किसान खेती करके फसल बोता और कटाता है। इसमें से एक हिस्सा बंटाईदार किसान को मिलता है और बाकी उत्पादित फसल को जमीन मालिक अपने पास रखता है। वहीं सिकमी किसान वह होते हैं जो एक साल के लिए दूसरे किसान की जमीन किराये पर लेकर खेती करते हैं। इसके बदले में सिकमी किसान को किराये के रूप में एक मोटी रकम जमीन मालिक को देनी होती है। अभी एक एकड़ जमीन पर 11 हजार रुपए प्रति साल का सिकमी रेट चल रहा है।
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