
अहमदाबाद – विश्वास कुमार रमेश, यह वह नाम है जो आने वाले कई सालों तक लोगों को याद रहेगा. गुरुवार को अहमदाबाद में जो प्लेन क्रैश हुआ है, विश्वास उसमें बचे एकमात्र यात्री हैं. प्लेन में सवार सभी 241 लोगों की मौत हो चुकी है. खुद विश्वास को भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि वह जिंदा बच गए हैं. गुरुवार शाम जैसे ही उनका मलबे से बाहर आने वाला वीडियो वायरल हुआ, हर कोई यह जानने की कोशिश में लग गया कि आखिर वह कौन सा चमत्कार था जिसने विश्वास की जान बचाई है. इस बात का खुलासा खुद विश्वास ने कर दिया है कि उनकी जान इस हादसे में कैसे बच गई.
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इसलिए बची विश्वास की जान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तो गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को विश्वास से मुलाकात की. विश्वास ने हादसे के बारे में बताया कि टेकऑफ के बस 5 से 10 सेकेंड के अंदर ही लगने लगा था कि प्लेन कहीं जम गया है. विश्वास के शब्दों में वह फ्लाइट के जिस हिस्से में थे वह हिस्सा हॉस्टल के ग्राउंड फ्लोर पर लैंड हुआ था. वह जिस तरफ बैठे थे उस तरफ थोड़ा स्पेस था और इसलिए वह निकल सके. उनकी मानें तो शायद बाकी लोगों की तरफ दीवार थी और इस वजह से वो लोग बाहर नहीं निकल पाए. लेकिन उनकी जान बच सकी.
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फ्लाइट की सीट नंबर 11A
विश्वास ने बताया कि जिस समय आग लगी उनका बांया हाथ जल गया था और उन्हें लोग एंबुलेंस में लेकर आए. विश्वास की मानें तो सब कुछ उनकी आंखों के सामने हुआ था लेकिन उन्हें खुद नहीं मालूम कि वह आखिर कैसे जिंदा बच गए हैं. विश्वास को कुछ समय के लिए लगा था कि वह भी मरने वाले हैं. लेकिन जब आंख खुली तो वह जिंदा थे. वह अपनी सीट बेल्ट निकालने की कोशिश करने लगे और इसके वह वहां से निकल गए. विश्वास का कहना था उन्होंने अपनी आंखों के सामने एयरहोस्टेज और दूसरे लोगों को मरते हुए देखा. विश्वास का सीट नंबर 11A था.
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डॉक्टर भी चमत्कार से हैरान
असरवा सिविल अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर्स की मानें तो रमेश का बचना किसी चमत्कारकी तरह है. वह क्रैश के बाद करीब-करीब पूरी तरह से सुरक्षित बाहर आ गए. उनकी छाती पर चोट लगी लेकिन फिर भी उन्हें कुछ नहीं हो सका. अस्पताल में जहां रिश्तेदार अपने प्रियजनों की तलाश कर रहे थे, रमेश मीडिया को घटना के बारे में बता रहे थे. रमेश अपना बोर्डिंग पास पकड़े हुए थे और वह भी पूरी तरह से सुरक्षित था. वह पिछले दो दशकों से लंदन में रह रहे हैं. हाल ही में अपने भाई अशोक के साथ भारत आए थे. रमेश और उनके भाई अशोक दीव गए थे और वापस लौट रहे थे.