
Dantewada: अच्छी बारिश के लिए आदिवासियों ने की भीमसेन जात्रा, वर्षो से निभाई जा रही परंपरा
छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर की पारंपरिक पूजा पद्धतियों में आधुनिकता का साया अभी नहीं पड़ा है। ग्रामीण अपने रीति रिवाजों और संस्कृति के प्रति उतने हो आस्थावान हैं, जैसे पहले थे। प्रकृति पूजा के समृद्धशाली परंपरा के वाहक आदिवासियों की कई पीढ़ी इन पद्धतियों को नहीं भूला पाई है। पीढ़ी दर पीढ़ी इनका हस्तांतरण होता रहा है। खेती किसानी का समय आते ही यहां देवी-देवताओं को मनाने और उनकी पूजा का क्रम शुरू हो जाता है।
इसी क्रम में शुक्रवार को भीमसेन जात्रा पूजा की परंपरा भी दंतेवाड़ा में निभाई गई। श्रावण माह शुरू होने के उपरांत भी अंचल में अब तक अच्छी बारिश नहीं होने से अकाल पड़ने की आशंका से ग्रामीण अब देवी-देवताओं को मनाने में लग गए हैं। प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी जुलाई माह में शुक्रवार को भीमसेन जात्रा की परंपरा निभाई गई।
मान्यता है कि यहां सबसे बड़ी देवी विराजमान
इसके बाद दोपहर को पुराने रेस्ट हाउस के पास गांवदेई गुड़ी में सभी ग्रामीण पहुंचे। इस गुड़ी में सभी गांव की सबसे बड़ी देवी विराजमान है। पूजा के दौरान यहां बकरा, मुर्गा, मुर्गी, सुअर व बतख की बलि दी गई। इस जात्रा में आसपास के समस्त गांव के सिरहा-गुनिया और ग्रामीण शामिल हुए।
वैसे तो भीमसेन जात्रा की यह परंपरा हर वर्ष जुलाई के दूसरे मंगलवार को निभाई जाती है। लेकिन इस साल मंगलवार की जगह भीमसेन अर्थात इंद्रदेव की पूजा शुक्रवार को संपन्न किया गया। इसके पीछे माता मंदिर के पुजारी ने यह तर्क दिया कि चूंकि भीमसेन जात्रा पूजा मंगलवार को ही किये जाने की परंपरा शुरू से रही है। लेकिन इस बार यह शुक्रवार का दिन इसलिए चुना गया इलाकों में समृद्धि आती है।
क्योंकि रविवार को हरियाली अमावस्या पड़ रही है और विधान है कि अमावस्या पर्व से पहले ही भीमसेन पूजा किया जाता है। इसलिए मंगलवार की जगह शुक्रवार को भीमसेन जात्रा पूजा संपन्न किया गया। ऐसी मान्यता है कि इस जात्रा और पूजा के बाद इंद्र देवता प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद स्वरूप वर्षा होती है, जिससे कृषि और किसानी को नया जीवन मिलता है।