
चाणक्य नीति के 12वें अध्याय के पहले श्लोक में कहा गया है कि किसका घर सुखी रह सकता है. आचार्य चाणक्य ने कहा है कि उसी व्यक्ति का घर सुखी हो सकता है, जिसके बेटे और बेटियां अच्छी बुद्धि से युक्त हों, पत्नी मृदुभाषी हों. जिसके पास परिश्रम हो. ईमानदारी से पैदा किया हुआ धन हो. अच्छे मित्र हों, अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और अनुराग हो. आचार्य चाणक्य एक श्लोक में कहते हैं-
चाणक्य कहते हैं कि जिसके बेटे और बेटिंया अच्छी बुद्धि वाले हों, पत्नी मधुर बोलने वाली हो, जिसके पास परिश्रम से कमाया धन हो, अच्छे मित्र हों, पत्नी से प्रेम हो, नौकर चाकर आज्ञाकारी हों, घर में अतिथियों का आदर सम्मान हो, ईश्वर की पूजा होती हो, घर में मीठे भोजन और मधुर पेय की व्यवस्था हो, हमेशा सज्जन व्यक्तियों की संगति हो ऐसा घर सुखी है. यह प्रशंसा के योग्य है. आचार्य चाणक्य एक आदर्श गृह के बारे में बताते हैं कि कैसा होना चाहिए-
इसके आगे वह कहते हैं कि अपने बंधु बांधवों से वही व्यक्ति सुखी रह सकता है जो उनके साथ सज्जनता और विनम्रता से व्यवहार करता है. वह कहते हैं कि दूसरे लोगों पर दया और प्रेमपूर्ण व्यवहार करने वाला व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है. माता पिता और आचार्य के साथ सहनशीलत वाला व्यवहार करने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.
ऐसे लोग नहीं रहते सुखी
चाणक्य कहते हैं कि जिसने कभी दान नहीं दिया, वेद नहीं सुने, सज्जन लोगों की संगति नहीं की, माता पिता की सेवा नहीं की वह कभी सुखी नहीं रह सकता है.
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