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छत्तीसगढ़ में धान का महत्व

छत्तीसगढ़ खनिज संपदाओं से परिपूर्ण होने के बावजूद कृषि प्रधान प्रदेश हैं। सरकार की महात्वाकांक्षी धान खरीदी योजना व जन कल्याणकारी पीडीएस योजनान्तर्गत लाभान्वितों हितग्राहियों को सुचारू प्रदाय करने के साथ ही प्रदेश के लगभग पच्चीस लाख कृषक परिवार धान की पैदावार से अपना जीवन व्यापन करतें हैं। साथ ही इनकी उपज को प्रदेश सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीद कर बोनस सहित भुगतान करने पर प्रदेश के कृषकों में उत्साह का वातावरण बन जाता है। विगत खरीफ वर्ष में १४८ लाख मेटन धान की खरीदी उपरांत इस खरीफ वर्ष में सरकार द्वारा १६० लाख मेंटेन धान खरीदी का लक्ष्य निर्धारित किया है। जो कि पूरे प्रदेश में १४ नवम्बर से समर्थन मूल्य में कृषकों से उपार्जन का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। क्रय किए धान का निराकरण सिर्फ चांवल तैयार करने से ही संभव हो पाता है। शासन के अधिकारी भी उपार्जित लाखों टन चांवल का कैसे व कहां समाधान करें इसी उधेड़बुन में लगे हुए है।

छग में धान की शियासत – छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के समय से विभिन्न सत्ताधारी दलों द्वारा प्रदेश के कृषकों को धान पर समर्थन मूल्य व धान पर बोनस देने की परंपरा का निर्वहन कर अपना वोट बैंक बनाने की दिशा में निरन्तर सक्रिय है। प्रारंभ में जोगी शासन के बाद भाजपा ने प्रदेश में अपना वजनदार नेतृत्व स्थापित कर तीन कार्यकाल तक शासन किया । लेकिन कृषकों के बोनस घोषणा पर सही निर्णय न लें पाने की वजह से सत्ता से बाहर हो गई। पश्चात तत्कालीन कांग्रेस शासन में एकाएक कृषकों की उपज में बोनस राशि में वृद्धि की घोषणा से कांग्रेस छग में सरकार बनाने में सफल हो पायी थी । इस विषय की गंभीरता को समझते हुए विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भी कृषक वर्ग को लुभावने वादे भाजपा शासन के बकाया बोनस के साथ समर्थन मूल्य में बोनस की राशि एक साथ देने की घोषणा पर सत्ता में वापसी कर पायी है।

धान का निराकरण व समस्या – वर्ष दर वर्ष छग में धान खरीदी का रकबा बढ़ने व १५ क्विंटल से २१ क्विंटल करने पर शासकीय धान खरीदी में आशातीत वृद्धि होती जा रही है । सरकार कृषक को लाभान्वित कर रही है ये प्रदेश के लिए खुशी की बात है , लेकिन धान के निराकरण में वर्तमान सरकार की कमज़ोरी समझे या अधिकारियों की सूझबूझ की कमी जो खरीदें गये धान से निर्मित चांवल को भण्डारित कर अन्य प्रांत में भेजने की दिशा में सफल नहीं हो पा रही है। पूर्व में प्रदेश व केन्द्र में अलग – अलग दलीय सरकार थी। जिससे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता था। जिससे शासन व मिलर प्रभावित होते रहते थे। लेकिन वर्तमान में तो डबल इंजन की सरकार होने पर भी केन्द्र द्वारा कोई विशेष सहयोग प्रदान नहीं किया जाना चिन्तित करता है। साथ ही गत वर्ष २३-२४ के उपार्जित धान का सम्पूर्ण निराकरण नहीं कर पाने की वजह से लगभग २० लाख क्विंटल धान अभी संग्रहण केन्द्रों में खराब हो रहा है। जिसकी अनुमानित कीमत लगभग १००० – १२०० करोड़ रुपए होती है। शासन को संग्रहण केन्द्रों में नियुक्त अधिकारी कर्मचारी व धान सूखत, बारदाना खराब , धान का सड़ना , परिवहन राशी अन्य में करोड़ों रूपए अलग नुकसान हो रहा है।

विगत सरकार की पहल – विचारणीय पहलू यह है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अन्तिम दो वर्षों की धान खरीदी व निराकरण पर दृष्टि डालें तो सरकार ने सरकार के लिए इसे लाभ का अवसर बनाया और जीरो प्रतिशत शार्टेज के साथ , परिवहन में बचत व अन्य युक्तियुक्त योजनों से शासन का लगभग १५०० करोड़ बचत कर मिलर को उत्साहित करके मिलिंग राशी में प्रोत्साहन राशी की वृद्धि प्रदेश के मिलर को अतिरिक्त अनुमानित प्रोत्साहन ८०० करोड़ प्रदाय करने पर भी शासन को ७०० – ८०० करोड़ का लाभ प्राप्त हुआ होगा। ये तरीका सरकार को धान खरीदी के नुकसान से उबारने व प्रदेश के राइस मिल व्यवसाय को नया जीवन देने में मील का पत्थर साबित हुआ।

मार्कफेड विरूद्ध राइस मिलर -विगत खरीफ वर्ष २१-२२ व २२-२३ एवं २३-२४ (जो अभी पूर्णता की ओर है) की कस्टम मिलिंग का लगभग ७००० हजार करोड़ रुपए विभिन्न मदों का मिलरो को मार्कफेड से लेना है। इतनी बड़ी राशी का विभिन्न प्रकार के मदों में जैसे बारदाना जमा पर मिलर को सही गणना न कर यूजर चार्ज व बारदाना राशी की कटौती, धान व चांवल (नान / एफसीआई) के परिवहन की वास्तविक राशि, एफ आरके की राशि (नान / एफसीआई) , हमाली, जीपीएस का बेवजह किराया काटा गया व अन्य मदों के साथ मिलर को २२-२३ के प्रोत्साहन की द्वितीय ६०/- की किस्त ,एवं २३-२४ के कस्टम मिलिंग का सम्पूर्ण भुगतान (मिलिंग चार्ज, प्रोत्साहन राशी, धान चांवल परिवहन , एफ आरके की राशि , बारदाना की राशी , यूजर चार्ज , हमाली व अन्य राशि) शासन से लेना बाकी है। मिलर अपनी लागत से वर्ष भर काम करता है और उसे दो तीन वर्षों का भुगतान न मिलने से निरन्तर आर्थिक तंगी की हालत में पहुंच गया है। मार्कफेड व शासन की नीतियों से मिलर हताश व परेशान नजर आने लगा है।

इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए मिलर के जिला से लेकर प्रदेश नेतृत्व ने हर नेता , मंत्री , मुख्यमंत्री व संबंधित उच्च अधिकारियों तक गुहार लगाई गई लेकिन किसी ने भी समाधान की दिशा में उचित पहल नहीं की।

२४-२५ की कस्टम मिलिंग पालिसी में अनेक विसंगति -ज्ञात हो शासन २४-२५ के धान की खरीदी प्रारंभ कर दी है और मिलर पर कस्टम मिलिंग की नई नीतियों का प्रकाशन कर दिया है। जिसमें प्रोत्साहन राशि १२०/- की जगह ६०/- दिया जाना है। धान उठाव , चांवल प्रदाय में समयानुसार पेनाल्टी अधिरोपित किया जायेगा। मिलर को धान उठाव व चांवल प्रदाय में परिवहन राशी नाम मात्र की मिलेगी। जो ऊंट के मुंह में जीरा समान होगी। मिलर अपने प्रतिष्ठान में दो सीसीटीवी कैमरा हाई पावर का लगायेंगे जिसे मार्कफेड मुख्यालय से संचालित किया जाएगा।

मिलर आर्थिक तंगी से जूझ रहा है – मिलर आज बैंक गारंटी बनाने के लिए व पुराने बारदानों की रिपेयरिंग भी करा पाने में असमर्थ हैं। गत वर्षों के बारदाना जमा की राशि व यूजर चार्ज नहीं मिलने से मिलर इस वर्ष शासन को पुराना बारदाना देने में असमर्थ व असहाय महसूस कर रहे हैं। निश्चित रूप से सरकार की धान खरीदी में ५०-५० के अनुसार नये और पुराने बारदानें में खरीदी होनी है जो मिलर की बारदाना जमा की असमर्थता के कारण प्रभावित होना संभावित है।

वर्तमान सरकार का दायित्व – प्रदेश में १६० लाख मे टन धान उपार्जन के लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रदेश शासन को केन्द्र सरकार व एफसीआई से तालमेल बनाकर यहां के उपार्जित चांवल को आवश्यकतानुसार अन्य प्रान्तों में भेजने की सुदृढ़ योजना बनाना चाहिए। भण्डारण क्षमता बढ़ने की दिशा में नये गोदामों का निर्माण भी आवश्यक प्रतीत होता है। साथ ही प्रदेश के मिलर को प्रोत्साहित करने के लिए कस्टम मिलिंग राशी के साथ विगत वर्षो के अनुसार प्रोत्साहन राशि में और वृद्धि करने पर ध्यानकर्षित करने व मिलर से सामान्य नीति निर्देश से मिलिंग करवाने के निर्णय से सरलता के साथ धान का निराकरण व चांवल प्रदाय को सुचारू रूप से सम्पन्न किया जा सकता है।

कस्टम मिलिंग नीति में मिलर की स्थिति – वर्तमान में प्रदेश की कस्टम मिलिंग नीति से प्रदेश के मिलर को आर्थिक नुकसान होता दिख रहा है। पूर्व वर्ष के उठाए गए धान को एफसीआई अभी तक स्थानाभाव के कारण चांवल नहीं ले पायी है । जिससे मिलर को धान सूखत व धान की क्वालिटी व अन्य खर्चो के कारण ही नुकसान हो रहा है। और शासन द्वारा वर्तमान नीतियों को जारी कर मिलर पर विभिन्न प्रकार की कड़ाई व ५० प्रतिशत प्रोत्साहन राशि की कटौती होने पर यह उद्योग प्रभावित होने की कगार पर पहुंच गया है। प्रदेश के सभी मिलर का विगत दो वर्षों का भुगतान का निराकरण शासन – प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है। जिसमें २३-२४ तक का अनुमानित ७००० करोड़ की राशी मिलर को मार्कफेड से लेना बाकी है। इसमें मिलिंग राशी , प्रोत्साहन राशि, बारदाना राशी, धान/ चांवल परिवहन राशी, एफआरके की राशि व अन्य भुगतान मिलर को करने पर ही चांवल उद्योग को बचाया व कृषकों की उपज का निराकरण किया जा सकता है।

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