जामताड़ा पुलिस कप्तान अनिमेष नैथानी अपने पुलिस परिवार के तरफ से नेस सागुन सोहराय महपर्व मिलन समारोह 24 के उद्घाटन समारोह में शिरकत करने पहुंचे
जामताड़ा पुलिस कप्तान ने अपने पुलिस परिवार को प्रकृतिक पर्व में मांडर की थाप से झारखण्ड पुलिस परिवार के साथ ही पशु और वृक्षों के बचाव को लेकर फायदे भी गिनाए, और कहा पेड़ पौधे और पशु इस झारखण्ड की पहचान है, साथ ही यह भी कहा की सोहराय का मतलब सहलाना यानि प्रेम करना क्योंकि भारत के अधिकांश मूल निवासी खेती-बारी पर निर्भर है, खेती बारी का काम बेलो व भैंसों के माध्यम से की जाती है, इसीलिए सोहराय का पर्व में पशुओं को माता लक्ष्मी की तरह पूजा की जाती है, इस दिन बैलों व भैंसों को पूजा कर किसान वर्ग धन-संपत्ति वृद्धि की मांग करते हैं, सोहराय का पर्व झारखंड के सभी जिले में मनाया जाता है,और इसकी शुरुआत दामोदर घाटी सभ्यता के इसको गुफा से शुरू हुई थी,आज भी जनजातीय समाज में इस पर्व का बेहद महत्व है, जनजातीय समाज इस पर्व को उत्सव की तरह मनाता है, आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है, शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूलतः प्रकृति पूजक है, इसकी तैयारी कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती है। आज भी सुदूरवर्ती क्षेत्र के कच्चे मकानों के दीवारों में सोहराय कला दिखाई देती है। जनजातीय समाज टोली बनाकर मांदर की थाप पर नाचते गाते हैं,अनिमेष नैथानी पुलिस*जामताड़ा पुलिस कप्तान अनिमेष नैथानी अपने पुलिस परिवार के तरफ से नेस सागुन सोहराय महपर्व मिलन समारोह 24 के उद्घाटन समारोह में शिरकत करने पहुंचे,*
जामताड़ा पुलिस कप्तान ने अपने पुलिस परिवार को प्रकृतिक पर्व में मांडर की थाप से झारखण्ड पुलिस परिवार के साथ ही पशु और वृक्षों के बचाव को लेकर फायदे भी गिनाए, और कहा पेड़ पौधे और पशु इस झारखण्ड की पहचान है, साथ ही यह भी कहा की सोहराय का मतलब सहलाना यानि प्रेम करना क्योंकि भारत के अधिकांश मूल निवासी खेती-बारी पर निर्भर है, खेती बारी का काम बेलो व भैंसों के माध्यम से की जाती है, इसीलिए सोहराय का पर्व में पशुओं को माता लक्ष्मी की तरह पूजा की जाती है, इस दिन बैलों व भैंसों को पूजा कर किसान वर्ग धन-संपत्ति वृद्धि की मांग करते हैं, सोहराय का पर्व झारखंड के सभी जिले में मनाया जाता है,और इसकी शुरुआत दामोदर घाटी सभ्यता के इसको गुफा से शुरू हुई थी,आज भी जनजातीय समाज में इस पर्व का बेहद महत्व है, जनजातीय समाज इस पर्व को उत्सव की तरह मनाता है, आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है, शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूलतः प्रकृति पूजक है, इसकी तैयारी कई दिनों पूर्व शुरू हो जाती है। आज भी सुदूरवर्ती क्षेत्र के कच्चे मकानों के दीवारों में सोहराय कला दिखाई देती है। जनजातीय समाज टोली बनाकर मांदर की थाप पर नाचते गाते हैं,अनिमेष नैथानी पुलिस कप्तान जामताड़ा।