गया भागवत करायेंगे तो उसमे कुछ नियमों का पालन इस प्रकार

नंदी श्राद्ध हवन और फेरी देंगे उस दिन से नियम चालू होगा,
वर्जित है – बैगन, लौकी, उरद, मसूर की दाल, बेसन, सरसों, सरसों तेल, आचार, आम का आचार, पापड़, प्याज, लहसुन, राई, हींग, बीडी, सिगरेट, तम्बाकू, शराब और नशीली चीज का सेवन न करे।- बनाव, श्रृंगार, दिखावा आदि से पूर्ण परहेज।-भागवत कथा के समय किसी प्रकार का नाच गाना नहीं करना चाहिए, कारण आपके पूर्वज वायु रूप में सूक्ष्म रूप से वहाँ विराजमान रहते हैं।-गद्दे पर सोना, ब्रम्हचर्य का पालन करना, किसी को कुछ न देवे, किसी से कुछ न लेवे, बाहर का कुछ नहीं खाना है, बाल न बनवाए, रबर की चप्पल पहनना है। गुस्सा होना, चुगली करना, अपशब्द बोलना, यह सब मना है, सबको शांति से रहना है। भागवत का भंडारा होने के बाद बाल बनवा सकते है। भागवत चालू होगी उस दिन से सबको अपने घरों में 5 भजन रोज करना है।-ब्यास गद्दी वाले महाराज एवं अपने परिवार में अपनों से बड़ो की ध् गोकखाना, इसके अलावा बाहर के किसी व्यक्ति का चरण स्पर्श न करे।-पितृ आवाहन से लेकर गया श्राद्ध से वापसी तक सभी प्रकार के
लोकाचारो का निषेध है, कही आना जाना, पार्टी, शोक आदि सभी पर निषेध 1 है। केवल नित्यनैमित्तिक घर का पूजन करना है।-गयाजी जायेंगे उस दिन से कपडा धोने का काम शाम को करे एवं सिर धोना शाम को करे, चमड़ा का बेल्ट या पर्स नहीं रखना है।जोड़े से भागवत में बैठने वालो के लिये नियम एवं जानकारी
-रोज सुबह उठकर 7 बजे तैयार होकर बेदी पूजा के लिये पूजा स्थान में पहुचना है।-पूजा से उठकर सुबह 9:30 बजे फल, दूध, चाय लेना ।
-दोपहर को फलाहार लेना या नहीं सकने पर खाना खा सकते हैं-दोपहर 2:45 बजे भागवत स्थल में पहुचना।-रात को भोजन करना।
जोड़े में बैठने वालो को पूरी भागवत ध्यान लगाकर सुनना है-संयम एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना है-यह सब नियम सिर्फ अपने खुद के लिये है, दूसरा नहीं कर रहा है ऐसी शिकायत आपस में नहीं करना है।-गया भागवत श्राद्ध जीवन का सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है, इसको पूर्ण श्रद्धा भक्ति से ही संपन्न करना चाहिए।
-अपने पास जो कुछ है, सब पितरो का दिया हुआ है, गया भागवत में अपने खुद को सब काम शांति एवं श्रद्धा से करना है एवं एक दूसरों की शिकायत बिलकुल न करे, यह सब काम मेरा अपना है, इसी भावना से करना है। श्रद्धा भक्ति एवं शांति से सब काम करना है।-नंदी श्राद्ध हवन होगा, उस रोज से सब पितरो की मूर्ति उतार कर रख लेवे -क्रोध, लोभ, मोह माया का त्याग करना है-समस्त परिवार वालो को कलश यात्रा शामिल होना है।-प्रयागराज को भगवान का मस्तिष्क माना गया है, बनारस को नाभि और गया जी में चरण (पद) स्वरुप है।-प्रयागराज में सभी पुरुषों का मुंडन होगा, बाल लेकर त्रिवेणी स्नान कर पिंड दान करे, साथ में लाए हुए पित्तर स्वरुप नारियल को स्नान कराये। (सात गाँठ का बांस एवं मिटटी)
गया श्राद्ध में संपन्न होने वाले कुछ नियमः गयाजी में प्रतिदिन सुबह 3:30 बजे पूजा करने हेतु निकलना होगा।-गयाजी में महिलाये अपना बाल नहीं धोएंगी-सुहागन औरतें मेहँदी लगवायें, बुजुर्गों का आशीर्वाद लें।-पिंड दान में सिर्फ एकम, पंचमी, अमावस के दिन खीर के पिंड लगते हैं। बाकी दिन जौ आटा के पिंड लगते हैं।ग़यारश के दिन खोवे का पिंड देना पड़ता है।-नवमी के दिन राम गया व सीता कुंड में श्राद्ध के बाद श्रृंगार सामान पायल, बिछिया, श्रृंगार सामान, साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट आदि सौभाग्य सामग्री दान (2 जगह) आचार्य व तीर्थ पंडा को देवे, तीर्थ पंडे की पूजा आदि।-अमावस्या के दिन अक्षय वट पर विष्णु शय्या दान (सुखसेज) तीर्थ पंडा को देना होता है, इस दिन यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन भी करवाना चाहिए। पितृ दंड और मिटटी, नारियल जो भी पितरों के निमित्त लाए हैं, वहीं अक्षय वट के पास चढाना हैं।-विष्णुपद मंदिर में तुलसी जी का अभिषेक होता है। यह पूजा शाम को होती है। एकादशी को शालिग्रामजी का विष्णुसहस्त्र नाम से तुलसी अर्चन पूजन आरती होती है। एकादशी को शालिग्राम जी को विष्णुपद मंदिर में जाकर विष्णुसहस्त्रनाम से तुलसी अर्चना करना है।
-तेरस को पितरों की दिवाली मनाते हैं ।
-धर्मशाला से वापसी होते समय उस जगह पर एक सुहागन स्त्री एक दिया जलाकर हाथ जोड़कर तुरंत रवाना हो जाये तथा पलटकर नहीं देखे।-सभी कर्मों में गठजोड़ा होना आवश्यक है।-भोजन की व्यवस्था हेतु सामग्री व रसोइया अपने साथ में ले जावे।