Health and fitness

Artificial Insemination: मात्र 70 रुपये में मुर्रा-थारपारकर नस्लों के पालन से हर महीने होगी बम्पर कमाई, देखे 1 दिन में देती है इतने लीटर दूध ?

Artificial Insemination: जाएगी किस्मत राजस्थान के बाड़मेर जिले में पशुपालन विभाग की एक अनोखी पहल ने थार के पशुपालकों की किस्मत बदलनी शुरू कर दी है. सिर्फ 70 रुपये में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा से अब किसानों को महंगी नस्ल की मादा बछड़ियां मिल रही हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी हो रही है.

थारपारकर और मुर्रा नस्लों

थारपारकर गाय और मुर्रा भैंस जैसी देश की बेहतरीन नस्लें अब बाड़मेर के खेतों और खलिहानों में देखी जा रही हैं. कृत्रिम गर्भाधान के जरिए ये नस्लें स्थानीय स्तर पर तैयार हो रही हैं, जिनसे सेहतमंद और ज्यादा दूध देने वाले पशु पैदा हो रहे हैं.

पशुपालन विभाग द्वारा सेक्स सॉर्टेड सीमन टेक्नोलॉजी का होगा उपयोग

पशुपालन विभाग द्वारा सेक्स सॉर्टेड सीमन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है जिससे लगभग 95 प्रतिशत मामलों में मादा बछड़ियां जन्म ले रही हैं. इससे पशुपालक अब नर पशुओं की अनावश्यक संख्या से मुक्त हो सकेंगे और दूध उत्पादन पर फोकस कर सकेंगे

यह मिलेगी थारपारकर गाय की विशेषताएँ

थारपारकर गाय, राजस्थान के बाड़मेर, जोधपुर और जैसलमेर क्षेत्रों में पाई जाती है. इसका उत्पत्ति स्थल पाकिस्तान के थारपारकर क्षेत्र को माना जाता है. यह गाय सफेद या धूसर रंग की होती है और दिन में 16 से 25 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है. इसे भारत की शीर्ष दुधारू नस्लों में गिना जाता है.

मुर्रा नस्ल की भैंस

मुर्रा भैंस को ‘काला सोना’ भी कहा जाता है, विशेष रूप से हरियाणा में. यह नस्ल मूलतः पंजाब की है, लेकिन अब देश-विदेश में भी पाली जा रही है. इसकी पहचान काले रंग और जलेबी जैसे मुड़े हुए सींगों से होती है. 7% वसा वाले दूध की वजह से इसे बेहतर दुग्ध उत्पादक नस्ल माना जाता है. यह भैंस 10 से 15 लीटर प्रतिदिन दूध देती है.

पशुपालक नस्लों पर निर्भरता

बाड़मेर जैसे सुदूरवर्ती इलाकों में दुग्ध उत्पादन के लिए बाहर की नस्लों पर निर्भरता अब कम हो रही है. सरकार की इस योजना से स्थानीय पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है. उन्नत नस्लें, कम लागत, और बेहतर मुनाफा अब उनकी पहचान बनती जा रही है.

बैल पालन

पारंपरिक खेती में बैलों की भूमिका अहम रही है, लेकिन अब बैल पालना महंगा सौदा बन गया है. महंगे चारे, पानी और रख-रखाव की समस्या के चलते बैलों की उपयोगिता घट रही है. ऐसे में यह नई तकनीक बैल पर निर्भरता को कम कर रही है और आधुनिक दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दे रही है.

सरकार देगी सुविधा

बाड़मेर पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. नारायण सिंह सोलंकी ने जानकारी दी कि जिले में मुर्रा और थारपारकर नस्लों में सेक्स सॉर्टेड सीमन की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है. पशुपालक को सिर्फ 70 रुपये में यह तकनीक मिल रही है, जिससे उन्हें गुणवत्तापूर्ण बछड़ियां मिल रही हैं.

दुग्ध उत्पादन में काफी इजाफा

थारपारकर गाय और मुर्रा भैंस दोनों नस्लों के साथ प्रयोग में दूध उत्पादन में काफी इजाफा देखने को मिल रहा है. ये नस्लें न केवल अधिक मात्रा में दूध देती हैं बल्कि उनका दूध पोषण से भरपूर और उच्च गुणवत्ता वाला भी होता है.