Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ विधानसभा शीतकालीन सत्र के चौथे दिन बुधवार को वंदे मातरम् पर चर्चा हुई।

 

धरमलाल कौशिक ने कहा – वन्दे मातरम केवल गीत नहीं बल्कि हमारे आजादी का मंत्र है*

 

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक द्वारा विधानसभा सत्र के चौथे दिन राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् पर विधानसभा में आयोजित विशेष चर्चा में अपनी सहभागिता निभाई और अपने विचार सदन के समक्ष रखें। इस चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की गौरवगाथा का प्रतीक है, जो हर देशवासी के लिए गर्व का विषय है। श्री कौशिक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भी आभार जताया कि संसद में इस विषय पर चर्चा कराकर राष्ट्रव्यापी विमर्श को आगे बढ़ाया गया। इसके साथ ही उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह एवं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जी को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि “वन्दे मातरम् स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा है” और कहा कि पक्ष और प्रतिपक्ष सबकी सदभावना है। कोई भी पार्टी, वर्ग, जाति, समुदाय, लिंग से उपर कोई है तो हमारा “वन्दे मातरम गीत” है। उन्होंने कहा कि यह केवल गीत ही नहीं यह बल्कि तात्कालीन समय में जब अंग्रेजो को खदेड़ना ना तब तब यह गीत भारत को साहित्य राष्ट्रवाद, स्वाधीनता संग्राम आदि चीजों से जोड़ा है यह गीत, कविता से लेकर राष्ट्रगीत बनने तक का सफर अप्रवेशिक शासन के खिलाफ भारत कि सामूहिक जाग्रति का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि वन्दे मातरम हमारा वह मंत्र है, हमारा वह यंत्र है । उन्होंने कहा कि जब भी संस्कृति की बात होती है, इतिहास की सच्चाई सामने आती है। उन्होंने कहा कि हम भी एक प्राचीन सभ्यता हैं, जो ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’ के आह्वान से प्रेरित होकर आत्मविश्वास के साथ भविष्य की ओर अग्रसर हैं। मातृभूमि के प्रति हमारी भावनाएं भी हमारे साझा दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। भारत का गीत वंदे मातरम और राष्ट्रगान, दोनों ही धरती को मां के रूप में संबोधित करते हैं। ये हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने और मातृभूमि की रक्षा करने के लिए प्रेरित करते हैं।

श्री कौशिक ने कहा कि यह देश की सभ्यता, राजनीतिक और सांस्कृतिक सोच का एक जरूरी हिस्सा बन गया। उन्होंने कहा कि 150 वर्ष उस महान अध्याय को, उस गौरव को पुनः स्थापित करने का अवसर है और मैं मानता हूं, सदन ने भी और देश ने भी इस अवसर को जाने नहीं देना चाहिए। यही वंदे मातरम है, जिसने 1947 में देश को आजादी दिलाई। स्वतंत्रता संग्राम का भावनात्मक नेतृत्व इस वंदे मातरम के जयघोष में था। यहां कोई पक्ष प्रतिपक्ष नहीं है, क्योंकि हम सब यहां जो बैठे हैं, यह हमारे लिए ऋण स्वीकार करने का अवसर है कि जिस वंदे मातरम के कारण लक्ष्यावादी लोग आजादी का आंदोलन चला रहे थे और उसी का परिणाम है कि आज हम सब यहां बैठे हैं और इसलिए हम सभी जनप्रतिनिधियों के लिए वंदे मातरम के ऋण स्वीकार करने का यह पावन पर्व है।