भगवत कृपा से संसार से वैराग्य होगी – डॉ युगल शरण जी महाराज
दार्शनिक प्रवचन का आज आठवां दिन ।

जांजगीर-चांपा : आत्मा को सुख सुख देने से ही हमें आनंद मिलेगा। पहले तो यह दृढ़ होना चाहिए कि हम आत्मा हैं। जब हम अपने आप को आत्मा मानेंगे तभी फिर आत्मा को सुखी बनाने का लक्ष्य बनायेंगे। हम जो आनंद चाहते हैं वह शरीर का विषय नहीं है आत्मा का विषय हैं। इसलिए जितना भी भौतिक पदार्थ दे दीजिए, इससे आत्मा सुखी नहीं होगा। क्योंकि आत्मा भौतिक विषय नहीं बल्कि दिव्य हैं , उक्त उद्गार ब्रज किशोरी सेवा मिशन द्वारा आयोजित 21 दिवसीय प्रवचन श्रृंखला के सातवें दिन परमपूज्य स्वामी डॉ युगल शरण महाराज ने हनुमान मंदिर प्रांगण में कही । प्रवचन श्रृंखला के शुभारंभ से पहले आगंतुक अतिथियों का स्वागत दुपट्टा तथा जगतगुरु कृपालु जी महाराज द्वारा रचित ग्रंथ भेंटकर किया गया । कार्यक्रम स्थल पर मीडिया से जुड़े हुए शशिभूषण सोनी ने प्रवचन के सारगर्भित वाक्यांश को प्रेस को जारी किया ।
महर्षि वेदव्यास जी के कथन का डॉ स्वामी जी ने विस्तार से प्रकाश डाला
श्रीमद्भागवत और विभिन्न पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ने कहा है कि संसार विरक्त है लेकिन मनुष्य उसी संसार में रमे हुए हैं । यह एक गहरा और विचार करने योग्य विषय हैं । संसार को मिथ्या और भ्रम बताने का भावार्थ यही है कि यह संसार स्थायी नहीं हैं और हमें इससे मोह नहीं करना चाहिए ।
संसार की वास्तविकता
महर्षि वेदव्यास जी के अनुसार संसार मिथ्या हैं और हमें इससे विरक्त होना चाहिए , लेकिन मनुष्य का स्वभाव हैं कि वह संसारिक वस्तुओं और संबंधों में उलझ जाता हैं और उन्हें ही वास्तविक मानने लगता हैं। प्रवचन सुनने आ श्रद्धालु भक्तों को स्वामी जी ने कहा कि यदि हमने संसार को जान लिया तो हमें कब का वैराग्य हो गया होता। अनंत प्रयास करते हुए भी अभी तक हमने संसार को जाना नहीं हैं , इसलिए संसार का परिज्ञान आवश्यक हैं ।
शरणागति का कुछ अंग भी हैं
अपने शरण्य का सदा अनुकूल चिंतन करना हैं, प्रतिकूल चिंतन कभी नहीं करना हैं । अपने आपको हरि-गुरु को धरोहर रूप में सौंपना-मैं आपका हूं। सब कुछ देकर भी अहंकार नहीं करना।
भगवत् प्राप्ति का आखिर क्रम क्या होना चाहिए हैं
प्रवचन स्थल पर प्रतिदिन दूरदराज से श्रवण करने श्रद्धालु भक्त पहुंच रहे हैं। स्वामी जी ने कहा कि पहला संसार को जानना आवश्यक हैं। दूसरा संसार से वैराग्य होना जरूरी । तीसरा श्रद्धा होना, चौथा महापुरुष का मिलन और महापुरुष की शरणागति , फिर पांचवा भजन क्रिया , छठवां अनर्थ की निवृत्ति, सातवां निष्ठा , आठवां रुचि, नवां आसक्ति, दसवां भाव, ग्यारहवां प्रेम, बारहवां -भगवत् प्राप्ति । स्वामी जी ने कहा कि अभी तक हम पहली सीढ़ी भी पार नहीं किये हैं । संसार का परिज्ञान नहीं हुआ हैं । इसलिए अभी तक संसार से वैराग्य नहीं हुआ हैं ।
संसार से हमारा मन कैसे हटेगा
जब इस मन में ये बात बैठ जायेगा कि जिस सुख का खोज मैं अनादिकाल से कर रहा हूं , वो परमानंद , वो परम सुख संसार में नहीं हैं । जब यह समझ में आ जाएगा मन को, बस तुरंत विरक्त हो जाएगा मन संसार से !
आध्यात्मिक का मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ
वेदव्यास जी के कथन का विस्तार से वर्णन करते हुए आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान प्रदान करते हुए विलक्षण और दार्शनिक गुरु डॉ स्वामी युगल शरण महाराज ने कहा कि हमें आज आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की आवश्यकता हैं। उन्होंने कहा कि हमें संसारिक मोह को त्यागकर आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।
प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालु भक्त
परशुराम मार्ग स्थित हनुमान मंदिर प्रांगण में चल रहे डॉ स्वामी जी महाराज द्वारा 21 दिवसीय प्रवचन का रसपान करने पुलिस अधीक्षक जांजगीर-चांपा विजय पाण्डेय, माधव अग्रवाल कोरबा,दिव्यांश चंदेल, एचडीएफसी बैंक शाखा चांपा मैनेजर रमेश झा, प्रकाश अग्रवाल, सुनील सोनी चैंबर ऑफ कॉमर्स, नारायण मित्तल, राजू पालीवाल, शशिभूषण सोनी,आशीष अग्रवाल, रमेश कुमार सोनी, पुरुषोत्तम शर्मा, श्रीमति शशिप्रभा सोनी,संतोषी सराफ , श्रीमति शांता गुप्ता, सरिता,सोमवती सोनी सहित असंख्य लोग शामिल हुए ।
रुपधन साधना शिविर आज से होगा आरंभ
सायंकाल प्रवचन के अतिरिक्त रुपधन साधना शिविर दिनांक 7 दिसंबर से दिनांक 20 दिसंबर, 2025 तक प्रातःकाल 7: 00 बजें से शुरु होकर 83:0 बजे तक अभ्यास स्वामी जी करायेंगे ।





