*कोण्डागांव के कोकोड़ी गांव में एथेनॉल प्लांट बना किसानों के लिए संकट, दूषित जल से फसलें बर्बाद *

- जिला ब्यूरो -मिलान राय *कोण्डागांव के कोकोड़ी गांव में एथेनॉल प्लांट बना किसानों के लिए संकट, दूषित जल से फसलें बर्बाद –[contact-form][contact-field label=”Name” type=”name” required=”true” /][contact-field label=”Email” type=”email” required=”true” /][contact-field label=”Website” type=”url” /][contact-field label=”Message” type=”textarea” /][/contact-form]
कोण्डागांव, 1अगस्त
कोण्डागांव जिला मुख्यालय से लगे कोकोड़ी गांव में स्थापित मां दंतेश्वरी मक्का प्रसंस्करण एवं विपणन सहकारी समिति मर्यादित का मक्का प्रसंस्करण प्लांट इन दिनों किसानों के लिए मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। जिला प्रशासन और छत्तीसगढ़ सरकार के मार्गदर्शन में स्थापित यह प्लांट अभी पूरी तरह से प्रारंभ नहीं हुआ है, लेकिन इसके प्रारंभिक इथेनॉल टेस्टिंग के दौरान ही आसपास के सैकड़ों एकड़ खेतों में फसल को भारी नुकसान होने लगा है। इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने किसानों की समस्या पर बेतुका बयान दिया है।
स्थानीय किसानों का आरोप है कि प्लांट से निकलने वाला दूषित जल उनके खेतों तक पहुंच रहा है। इससे न केवल धान की खड़ी फसल मुरझाने लगी है, बल्कि खेतों और जल स्रोतों में पाई जाने वाली प्राकृतिक जैवविविधता जैसे केंचुआ, मेंढक, मछली और सांप भी मर रहे हैं। इस पर्यावरणीय क्षति और आजीविका के संकट ने किसानों को हताश कर दिया है।
किसान मनहेर पोयाम जो मछली पालन करते हैं, बताते हैं कि दूषित जल तालाब में आने से मछलियां मरने लगी हैं। चंदर नेताम का धान पूरी तरह खराब हो गया और जब दोबारा बोआई की गई, वह भी नष्ट होने के कगार पर है। रायपाल नेताम, नेहरू पोयाम, कांति नेताम, मानसिंह पोयाम और जुगधर नेताम जैसे दर्जनों किसान अपनी पूरी फसल चौपट होने की बात कह रहे हैं। वे इस स्थिति के लिए प्लांट से निकले अपशिष्ट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
इस गंभीर स्थिति पर जब कृषि मंत्री रामविचार नेताम से कोण्डागांव में सवाल किया गया, तो उन्होंने किसानों के दर्द को समझने की बजाय प्लांट की प्रशंसा करते हुए विवादास्पद बयान दे डाला। मंत्री नेताम ने कहा, जहां फैक्ट्री लगता है, वहां स्वाभाविक है कि जिनका खेत जाता है, उन्हें तकलीफ होती है। लेकिन उसकी भरपाई के लिए सरकार गंभीर है। अभी यूनिट पूरी तरह प्रारंभ नहीं हुआ है, होने दीजिए।
अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) जैसी प्रक्रिया को गंभीरता से अपनाया था? क्या किसानों को विश्वास में लेकर परियोजना को आरंभ किया गया था? और क्या अब सरकार उन किसानों की भरपाई करेगी जिनकी फसलें पहले ही बर्बाद हो चुकी हैं? इस घटना ने साफ कर दिया है कि औद्योगिक विकास और ग्रामीण जीवन के बीच संतुलन न साधा जाए, तो विकास लोगों के लिए अभिशाप बन सकता है। फिलहाल, कोण्डागांव के किसान सरकार की ओर उम्मीद लगाए बैठे हैं मुआवजे, न्याय और पर्यावरण सुरक्षा के लिए।
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