भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित कार्यशाला में डॉ. दिनेश श्रीवास ने कोरबा जिले का प्रतिनिधित्व किया

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा में कैपेसिटी बिल्डिंग निर्माण पर छह दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। 28 फरवरी से 5 मार्च तक चले इस वर्कशॉप में देश भर के विद्वान प्राध्यापक उपस्थित रहे। भारतीय ज्ञान परंपरा को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा के सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित इस कार्यशाला में डॉ. दिनेश श्रीवास ने कोरबा जिले का प्रतिनिधित्व किया। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा में दक्षता निर्माण कार्यशाला का आज समापन हुआ। कार्यशाला में पी.जी. कालेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. दिनेश श्रीवास शामिल हुए।कार्यशाला के पश्चात अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा ने विश्व को अमूल्य ज्ञान की परम्परा दी है। गणित विषय को दिए गए योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि प्राचीन भारतीय गणितीय ज्ञान में संपूर्ण विश्व को वैज्ञानिक दृष्टि मिली है। इसके सिद्धांत पूर्व में जितने प्रासंगिक रहे हैं, आज भी उतने ही प्रासंगिक है। इस ज्ञान ने वैज्ञानिक विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। जिसके कारण नित नये अनुसंधान एवं तकनीकी विकास संभव हो पा रहा है। इस प्राचीन ज्ञान को जनसामान्य तक पहुंचना इसका उद्देश्य रहा है। इसी तरह प्राचीन भारतीय ज्ञान में रसायन विज्ञान के उद्भव एवं उपयोग पर अपनी बात रखी।वेदों में सामाजिक व्यवस्था, नीति आदि का समावेश है। ज्ञान परंपरा की अपनी विशेषताएं, सीखने का स्थान, इसके ग्रंथ और उनका वर्गीकरण है। भारत हमेशा से ज्ञान परंपरा और संस्कृति के लिए जाना जाता है। कृषि में भी भारत उन्नत रहा है। कृषि तथा अन्य उत्पाद और उपज जिसमें पौधे, जानवर और खनिज शामिल हैं। मानवता की उत्पत्ति के बाद से ही मनुष्यों, जानवरों और पौधों में बीमारियों के लिए भारतीय ज्ञान उपचार और उपचार का स्रोत रहे हैं। उन्होंने बताया कि हम भारतीय इसलिए नहीं हैं कि भारत में बसते हैं। हम भारतीय इसलिए है, क्योंकि भारत हममें बसता है। आज के भारत की विदेश नीति को समझना हो तो हमें विश्व स्तर पर भारत की ओर से किए जा रहे कार्यों को देखना चाहिए। इसके बगैर हम भारत को वह गौरवपूर्ण स्थान नहीं प्रदान कर सकते हैं।