
बस्तर टाइगर शहीद महेन्द्र कर्मा बस्तर के सर्वमान्य राजनेता रहे – कुलपति
विश्वविद्यालय में शहीद महेन्द्र कर्मा जयंती मनाया गया, कुलपति ने महेन्द्र कर्मा के प्रतिमा पर किया माल्यार्पण
जगदलपुर inn24( रविन्द्र दास) शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर जगदलपुर में 5 अगस्त को शहीद महेन्द्र कर्मा जयंती मनाया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव, कुलसचिव श्री अभिषेक कुमार बाजपेई एवं समस्त अधिकारी, शिक्षक एवं कर्मचारी ने शहीद महेंद्र कर्मा के प्रतिमा पर माल्यार्पण किया एवं पुष्प अर्पित किए। विश्वविद्यालय के सभाकक्ष में कुलसचिव ने उपस्थित अधिकारियों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि शहीद महेन्द्र कर्मा जी वास्तविक अर्थों में एक योद्धा थे। उन्होंने बस्तर के आदिवासियों के विकास के लिए कार्य किया एवं आदिवासियों के सर्वमान्य नेता के रूप में पहचान स्थापित किया। उन्होंने 25 मई, 2013 को झीरम घाटी में नक्सलियों द्वारा किए गए हमले में स्वयं को आगे किया और अन्य लोगों को बक्श देने की विनती की। उन्हें बस्तर का टाइगर कहा जाता है। वह बस्तर की राजनीति के प्रमुख केंद्र बिंदु रहे। कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव ने इस अवसर पर बताया कि छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने वर्ष 2020 में बस्तर विश्वविद्यालय का नाम शहीद महेन्द्र कर्मा र्मा के नाम पर करने की घोषणा की जिसके बाद छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम में वर्ष 2021 में संशोधन करते हुए बस्तर विश्वविद्यालय का नाम शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर किया गया। शहीद महेन्द्र कर्मा जी के जीवन के बारे में उन्होंने बताया कि उनका जन्म 5 अगस्त, 1950 को फरसपाल नामक स्थान पर कृषक परिवार में हुआ था। वह छात्र जीवन में छात्र नेता रहे। पूरे छत्तीसगढ़ में हम उन्हें एक सर्वमान्य राजनीतिज्ञ के रूप में जानते हैं। प्रारंभ से ही वह एक बड़े आदिवासी नेता के रूप में उभरे एवं बस्तर के सफल राजनीतिज्ञ के रूप में पहचान बनाई। वह 1980, 1998 एवं 2003 में विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। विधानसभा की अनेक समितियों के अध्यक्ष उपाध्यक्ष रहे। जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे। 1996 में पहली बार बस्तर लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए। तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन में जेल विभाग के मंत्री रहे। सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर प्रथम सरकार में वह उद्योग एवं वाणिज्य विभाग, ग्रामोद्योग, सार्वजनिक उपक्रम, सूचना एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री रहे। बहुत सारे प्राधिकरण एवं समितियों में वह अध्यक्ष रहे। सन 2004 से 2008 तक वह छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। सन 2013 में झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में उन्होंने अंतिम सांस ली। शहीद महेन्द्र कर्मा जी के जीवन मूल्य हम सभी को सदैव प्रेरित करते रहेंगे। उन्होंने अपना जीवन बस्तर के विकास के लिए समर्पित रहा। उन्होंने बस्तर के आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए अनेक स्तर पर प्रयास किया और लड़ाई भी लड़े। उन्होंने सरकार में दी गई जिम्मेदारियों को संभाला और छत्तीसगढ़ के विकास में अपना योगदान दिया। वह केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक संवेदनशील जागरूक इंसान भी रहे। शहीद महेन्द्र कर्मा जी जीवन भर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ते रहे। इसलिए सभी उन्हें बस्तर टाइगर के नाम से भी जानते हैं। विश्वविद्यालय के अतिरिक्त जगदलपुर के मेडिकल हॉस्पिटल का नाम भी शहीद महेन्द्र कर्मा जी के नाम पर रखा गया। साथ ही हरा सोना के रूप में प्रसिद्ध तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के लिए उन्होंने शहीद महेन्द्र कर्मा के नाम पर तेंदूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना प्रारंभ की गई। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव (प्रशासन) एवं जनसंपर्क अधिकारी श्री सी.एल. टंडन द्वारा किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शरद नेमा, प्रोफेसर स्वपन कुमार कोले, डॉ. विनोद कुमार सोनी, श्री देव चरण गावड़े सहित सभी शिक्षक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।