पर्यावरण दिवस विशेष : प्रकृति नहीं बची, तो हम भी नहीं बचेंगे है – कृषक जदुनंदन प्रसाद वर्मा

बिलासपुर ,जब हम सुबह खेत की मेंड़ पर खड़े होकर सूरज को उगते देखते हैं, पक्षियों की चहचहाहट सुनते हैं, मिट्टी की सोंधी खुशबू महसूस करते हैं तब समझ आता है कि असली जीवन क्या होता है। लेकिन अफसोस, यही मिट्टी, यही हवा, यही जल – अब धीरे-धीरे हमसे दूर होता जा रहा है। हर साल 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाया जाता है। भाषण होते हैं, बैनर लगते हैं, पौधे लगाए जाते हैं – लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई हम पर्यावरण को बचाने के लिए ईमानदारी से कुछ कर रहे हैं?
किसान की जमीन, अब पहले जैसी नहीं रही मैं खुद एक किसान हूँ। पहले मेरी जमीन बिना ज्यादा मेहनत के अच्छा उत्पादन देती थी। पर धीरे-धीरे रासायनिक खाद, कीटनाशक और मशीनों के ज्यादा प्रयोग ने मिट्टी की ताकत को ही खा लिया। अब अगर हम जैविक खेती की ओर न लौटें, तो अगली पीढ़ी के लिए बंजर खेत छोड़ जाएंगे।
*हमारे आँगन से गाय, आँगन बाड़ी से वृक्ष गायब हो गए*
जहाँ पहले हर घर में एक तुलसी का पौधा, एक आम या नीम का पेड़ और एक गोबर से लिपा हुआ आँगन होता था – वहाँ अब टाइल्स, प्लास्टिक और केमिकल्स ने जगह ले ली है।
हमने जो पेड़ काटे हैं, वो सिर्फ लकड़ी नहीं थे – वे छाया थे, फल थे, हवा के फिल्टर थे, और सबसे बड़ी बात – वे हमारे जीवन के साथी थे।
*प्रकृति पर हमला, खुद पर हमला*
जब हम जंगल काटते हैं, तो बरसात हमसे रूठ जाती है।जब नदियों में प्लास्टिक डालते हैं, तो जल संकट बढ़ता है।जब खेतों को ज़हर देते हैं, तो वो ज़हर हमारे भोजन में पहुँचता है।और जब हवा में धुआँ भरते हैं, तो साँसें महंगी हो जाती हैं।
क्या करें? आसान उपाय, कठिन संकल्प
1. हर साल एक पेड़ लगाने के साथ, हर दिन एक पेड़ बचाएँ।
2. घरों में कचरा छाँटकर फेंकें – गीला और सूखा अलग-अलग।
3. प्लास्टिक का उपयोग कम करें, कपड़े या पत्तों से बने थैले अपनाएँ।
4. बारिश का पानी रोकें – रूफ वाटर हार्वेस्टिंग से।
5. बच्चों को सिखाएँ कि धरती केवल हमारी नहीं है, अगली पीढ़ी की भी है।
अंत में – एक किसान का भाव
हम किसान जब खेत जोतते हैं, तो धरती माँ की पीठ को छूते हैं। वो हमारी पहली गुरु है। अगर हम इस धरती को समय रहते नहीं बचा सके, तो चाहे जितनी भी तरक्की कर लें, जीवन केवल एक मशीन बनकर रह जाएगा।
*इस पर्यावरण दिवस पर हम सब एक सच्चा वादा करें –*
पेड़ को देखकर सिर झुकाएँ, नदियों को देखकर मन नम हो जाए, और मिट्टी को देखकर हमें अपनी जड़ें याद आ जाएँ।
विशेष कृषक
सत्य जदुनंदन प्रसाद वर्मा
– मल्हार, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़*