
छोटे जुर्मों पर अब नही जाना होगा जेल,देना होगा केवल जुर्माना
केंद्र सरकार ने कारोबारी सुगमता बढ़ाने और मुकदमों का बोझ कम करने के लिए छोटे अपराधों में कारावास के प्रावधान को खत्म करने का फैसला किया है। ऐसी गलतियों के लिए अब सिर्फ अर्थदंड लगाया जाएगा। इसके लिए जनविश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक-2023 को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।
इन प्रावधानों में बदलाव के प्रस्ताव – आईटी एक्ट, 2000 में संशोधन के प्रावधान के तहत निजी जानकारी सार्वजनिक करने पर तीन साल सजा या पांच लाख तक हर्जाना या दोनों हो सकते हैं। अब जेल की सजा खत्म कर 25 लाख रुपये तक अर्थदंड का प्रस्ताव है।
पेटेंट कानून, 1970 के तहत भारत में पेटेंट होने का झूठा दावा कर किसी वस्तु को बेचना अपराध था। अब दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया है। कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 के तहत नकली ग्रेड पदनाम चिह्न के इस्तेमाल पर तीन वर्ष की जेल और पांच हजार जुर्माने का प्रावधान है। विधेयक में आठ लाख रुपये अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898 के तहत हर जुर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रस्ताव है।जुर्माने की जगह अर्थदंड का उपयोग : विधेयक में कई अपराधों में लगने वाले जुर्माने की जगह अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। जुर्माना लगाने के लिए अदालती आदेश की जरूरत होती है, जबकि अर्थदंड अधिकारी स्तर पर लगाया जा सकता है। इसका अर्थ है कि इन प्रावधानों में सजा के लिए अब अदालती कार्यवाही की जरूरत नहीं होगी।फैसला लेने वाले अफसरों की नियुक्ति। विधेयक के कानून बनने के बाद केंद्र सरकार दंड निर्धारित करने के लिए अधिकारियों की | नियुक्त कर सकती है। ये अधिकारी व्यक्तियों- को साक्ष्य के लिए समन भेज सकते हैं और उल्लंघन की जांच कर सकते हैं। इसमें अपीलीय तंत्र का भी प्रावधान होगा। मुख्यत: इन कानूनों में होगा संशोधन – औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 । सार्वजनिक ऋण अधिनियम, 1944 फार्मेसी अधिनियम, 1948 सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 कॉपीराइट अधिनियम, 1957 पेटेंट अधिनियम, 1970 पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 मोटर वाहन अधिनियम, 1988 ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 रेलवे अधिनियम, 1989 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 । मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 शामिल हैं। प्रस्तावित विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है। विधेयक के जरिये 19 मंत्रालयों से जुड़े 42 कानूनों के 183 प्रावधानों में संशोधन करके छोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रस्ताव है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर, 2022 में विधेयक लोकसभा में पेश किया था, जिसे संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था। 31 सदस्यीय इस समिति का गठन विशेष तौर पर इस मुद्दे पर चर्चा के लिए किया गया था। समिति ने विधायी और विधि मामलों के विभागों के साथ इससे जुड़े सभी मंत्रालयों के साथ लंबी चर्चा की। राज्यों से भी राय लेने के बाद इस वर्ष मार्च में समिति ने रिपोर्ट दी थी। बजट सत्र के दूसरे चरण में इसे संसद के दोनों सदनों में रखा गया था। सरकार का मानना है, देश के विकास की गति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले और निवेशकों को हतोत्साहित करने वाले पुराने कानूनों से मुक्ति जरूरी है। इसके लिए जेल की जगह व्यक्तिगत आत्मविश्वास का भाव पैदा करना चाहिए।
राज्यों को भी संशोधन के लिए प्रेरित करे केंद्र : समिति ने केंद्र सरकार को राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को भी जनविश्वास विधेयक की तर्ज पर छोटे जुर्म को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए कानूनी उपाय करने को प्रेरित करने को कहा है।
(खबर सौजन्य नवभारत)