After the Moon, ISRO will now reveal the secrets of the black hole, the mission will be launched in 2024

नई दिल्‍ली : 

भारत ने इस साल कई ऊंचाइयों को छुआ… हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ा. अब इस रफ्तार को साल 2024 में भी बरकरार रखने की कोशिश है. इस साल चंद्रमा पर विजय प्राप्त करने के बाद, भारत 2024 की शुरुआत ब्रह्मांड और इसके सबसे स्थायी रहस्यों में से एक “ब्लैक होल” के बारे में और अधिक समझने के लिए महत्वाकांक्षी अभियान शुरू करने जा रहा है. 1 जनवरी की सुबह, भारत एक एडवांस्‍ड एस्‍ट्रोनॉमी ऑब्जर्वेटरी (उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला) लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बनने जा रहा है, जो विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन स्‍टार्स के अध्ययन के लिए तैयार है.

जब तारों का ईंधन ख़त्म हो जाता है और वे ‘मर जाते हैं’, तब वे अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण खत्‍म हो जाते हैं और अपने पीछे ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारे छोड़ जाते हैं.

एक्स-रे विजन का लक्ष्‍य 

भारत का उपग्रह, जिसका नाम XPoSAT या एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के विश्वसनीय रॉकेट, पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) द्वारा लॉन्च किया जाएगा. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के खगोल भौतिकीविद् डॉ. वरुण भालेराव ने बताया, “नासा के 2021 के इमेजिंग एक्स-रे पोलारिमेट्री एक्सप्लोरर या आईएक्सपीई नामक मिशन के बाद यह ऐसा दूसरा मिशन है. मिशन तारकीय अवशेषों या मृत सितारों को समझने की कोशिश करेगा.”
एक्स-रे फोटॉन और विशेष रूप से उनके ध्रुवीकरण का उपयोग करके, XPoSAT ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के पास से विकिरण का अध्ययन करने में मदद करेगा. डॉ. भालेराव ने कहा कि ब्लैक होल ऐसी वस्तुएं हैं जिनका गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड में सबसे अधिक है और न्यूट्रॉन सितारों का घनत्व सबसे अधिक है, इसलिए मिशन ऐसे वातावरण के रहस्यों को उजागर करेगा जो अंतरिक्ष में देखा जाता है.
खगोल वैज्ञानिक ने कहा कि न्यूट्रॉन तारे छोटी वस्तुएं हैं, जिनका व्यास 20 से 30 किलोमीटर के बीच होता है. लेकिन वे इतने घने हैं कि एक न्यूट्रॉन तारे के केवल एक चम्मच पदार्थ का वजन माउंट एवरेस्ट से भी अधिक हो सकता है.

कम खर्च में सितारों तक पहुंचना

ब्रह्मांड का पता लगाने के लिए एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है. पहला ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन था, जिसे 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था, और इसके बाद 2 सितंबर, 2023 को आदित्य-एल1 लॉन्च किया गया था.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के खगोलशास्त्री डॉ. एआर राव ने कहा कि XPoSAT एक अनोखा मिशन है. उन्होंने बताया, “एक्स-रे ध्रुवीकरण में सब कुछ आश्चर्यचकित करने वाला है, क्योंकि खगोलीय खोज के इस क्षेत्र में सब कुछ नया है.”
इसरो के ‘कम खर्च’ वाले दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, भारत के XPoSat उपग्रह की लागत लगभग ₹ 250 करोड़ (लगभग $ 30 मिलियन) है, जबकि NASA IXPE मिशन के लिए $ 188 मिलियन की आवश्यकता है. नासा मिशन के XPoSAT को पांच साल से अधिक समय तक चलने की उम्मीद है.
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रोफेसर बिस्वजीत पॉल, जो XPoSAT मिशन के प्रमुख संचालकों में से एक हैं, उन्‍होंने कहा, “यह ब्रह्मांडीय वस्तुओं में तीव्र चुंबकीय क्षेत्र की संरचना और चरम बिंदु में पदार्थ और विकिरण के गुरुत्वाकर्षण व्यवहार की जांच करेगा. यह डेटा 8-30 किलोइलेक्ट्रॉन वोल्ट रेंज में न्यूट्रॉन सितारों और ब्लैक होल जैसे कुछ उज्ज्वल एक्स-रे सोर्स की जांच करके प्राप्त किया जाएगा.”

ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने में बड़ा प्रभाव

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने XPoSAT मिशन और सामान्य रूप से भारतीय वैज्ञानिक मिशनों के बारे में एक चिंता व्यक्त की है कि “यूजर कम्‍युनिटी अभी भी छोटा है.” उन्होंने कहा कि भारत के युवा खगोलविदों को इन महंगे राष्ट्रीय मिशनों में शामिल करने की जरूरत है. हालांकि, वरिष्ठ भारतीय वैज्ञानिक इस मिशन को लेकर बहुत उत्साहित हैं. सोनीपत में अशोक विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक डॉ दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “भारत लक्षित बैक-टू-बैक मिशनों के साथ ब्रह्मांड की खोज कर रहा है और देश ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने में बड़ा प्रभाव डाल सकता है.”
XPoSAT मिशन में पीएसएलवी अपनी 60वीं उड़ान भरेगा. 469 किलोग्राम के XPoSAT को ले जाने के अलावा, 44 मीटर लंबा, 260 टन का रॉकेट 10 एक्‍सपेरिमेंट्स के साथ भी उड़ान भरेगा.

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