अघोर पीठ जन सेवा अभेद आश्रम में आज गुरुपूर्णिमा पर विशेष सामाजिक सरोकार के साथ आध्यात्म का समन्वय अघोर संप्रदाय
छत्तीसगढ़/अकलतरा- भारत की साधु परंपरा में अनेक संप्रदाय और पंथ का जन्म हुआ लेकिन भारत में अघोर पंथ या संप्रदाय ऐसा पंथ माना जाता है जिससे लोग श्रद्धा भी रहते हैं और साथ ही भय भी रखते हैं इसका कारण है कि ऐसा माना जाता है कि और यह सच भी है कि भगवान शिव के रूद्र रूप की पूजा करने वाले अघोर संप्रदाय के साधु श्मशान में साधना करते हैं और निषिद्ध चीजों का सेवन करते हैं और यह भी कि अघोर साधुओं का आशीर्वाद और श्राप दोनों ही फलित होता है । अघोर शब्द का अर्थ है जो घोर न हो, किसी भी चीज के लिए अति आग्रही न होना अघोर है अर्थात जो सबके लिए सहज हो। आज भारत में अघोर संप्रदाय में बाबा कीनाराम का नाम सर्वत्र लिया जाता है इसके अलावा भी अनेक अघोर साधु हुए हैं जो अघोर परंपरा में वंदनीय और पूजनीय हुए। इन्ही बाबा कीनाराम की अघोर परंपरा में अवधूत भगवान राम हुए जिन्होंने अघोर परंपरा को एकांत से निकालकर जनसामान्य के बीच प्रचलित किया। अवधूत भगवान राम जिन्हें उनके भक्त वाराणसी में बड़े सरकार कह कर पुकारते थे उनका कहना था कि अघोर साधुओं के प्रति लोगों का भय दूर करने यह आवश्यक है कि अघोर साधु जनसामान्य के बीच रहकर लोगों के कल्याणार्थ कार्य करें। अघोर साधना में लोगों का कल्याण कर भगवान शिव को प्रसन्न करना ही मुख्य ध्येय होता है। इसी अघोर परंपरा में दल्हा पोड़ी का अघोर आश्रम अल्प समय में ही पूरे प्रदेश और भारत में धीरे धीरे विख्यात हो चला है।
2008 में स्थापित पोड़ी दल्हा अभेद आश्रम में परमपूज्य अवधूत भगवान राम के शिष्य परम पूज्य कापालिक धर्म रक्षित राम बाबा गुरु पीठ पर विराजमान हैं और अपने परमपूज्य गुरुदेव की परंपरा को उनके आदेशानुसार आगे बढ़ा रहे हैं। दल्हा पोड़ी अभेद आश्रम के परमपूज्य कापालिक धर्मरक्षित राम जी बाबा के सानिध्य और संरक्षण में आज साठ से ज्यादा नक्सली इलाके के अनाथ और सनाथ बच्चे आश्रम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और समाज और राष्ट्र को मजबूत और शक्तिशाली बनाने शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और इस परम पावन आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर अनेक बच्चें अच्छे पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस आश्रम में रहने वाले बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में खेलकर आश्रम और स्वनाम धन्य कर परमपूज्य गुरुदेव कापालिक धर्म रक्षित राम जी बाबा के नाम की कीर्ति और अधिक वंदनीय कर दिया है।
विधवा विवाह तथा तिलकरहित एवं सादगी पूर्ण विवाह को प्रोत्साहन
अघोर का अर्थ ही है घोर आग्रही नहीं होना। इसी संदर्भ में भारत में वर्जित विधवा पुनर्विवाह परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आश्रम से अनेक विधवाओं को पुनः विवाह के बंधन में बांधकर जीवन दोबारा शुरू करने की प्रेरणा दी गयी है। आज विवाह जैसे पवित्र संस्कार धन के प्रदर्शन का साधन बन चुके हैं और इसका नतीजा हमारी बेटियां अनेक तरह से भुगत रहीं है। विवाह संस्कार की पवित्रता और इसे आडम्बर मुक्त करने बाबा जी ने सादगीपूर्ण विवाह को प्रोत्साहन देते हुए विवाह के इच्छुक वर-वधु का विवाह सादगीपूर्ण ढंग से कराया जा रहा है जिससे विवाह की पवित्रता बनी रहे और विवाह के पवित्र संस्कारों से युक्त संस्कार वान संतानों का जन्म हो।
परम पूज्य अवधूत भगवान राम जी के महानिर्वाणदिवस पर कंबल वितरण
परमपूज्य बाबा अपने पूज्यपाद गुरूदेव के अवतरण दिवस पर गरीबों को कंबल का वितरण करते हैं। इस दिन संध्या होने तक जितने भी दान लेने वाले आते हैं उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है। भले ही यह काम दूसरे दिन क्यो न करना पड़े पर जितने लोग गुरुदेव के अवतरण दिवस पर आते हैं उन्हें कंबल अवश्य ही दान किया जाता है। इस विषय में कभी कभी उनके शिष्यों में बहस हो जाया करती थी कि गरीबों को कंबल देने पर कई बार एक ही दान लेने वाला सात से आठ बार कंबल ले जाता है । ऐसे लोगों को पहचान कर भगा देना चाहिए। ऐसी बात शिष्यों के मुंह से सुनकर बाबाजी ने कहा कि दान लेने वाला और दान देने वाला दोनों ही कितना दान कर रहे हैं और दान लेने वाला कितना दान ले रहा है, इसे गिनना नहीं चाहिए। ये दोनों के सामर्थ्य पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि देने वाला और लेने वाला दोनों ही अपनी सामर्थ्य जानते हैं इसलिए इन दोनों को उन दोनों की सामर्थ्य पर ही छोड़ देना चाहिए।
नशामुक्ति अभियान
परम पूज्य गुरुदेव अवधूत भगवान राम का मानना था कि राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका अग्रणी है और देश की दशा और दिशा युवा ही बदल सकते हैं लेकिन देश के बालक युवा वृद्ध आज नशे में लिप्त है जिसके कारण आज गलत लोग हमारा नेतृत्व कर रहे हैं जिसके कारण राष्ट्र की दूर्दशा हो रही है इसलिए उन्होंने नशामुक्ति अभियान को प्राथमिकता देकर हर वर्ष आश्रम परिवार इस विषय में एक कार्यशाला का आयोजन करते हैं और इस कार्यशाला से आज अनेक नशा करने वालों ने नशा छोड़कर सेवा की राह पकड़ ली है इस आश्रम से जुड़ने वाले युवा हर तरह की गलत आदतों से स्वतः दूर हो जाते हैं।
दीन-दुखियों की सेवा
इस आश्रम का सबसे पवित्र और महत्त्वपूर्ण उद्देश्य दीन दुखियों की सेवा करना और उनके दुखों का निवारण करना है इसी उद्देश्य से आश्रम में ही जड़ी बूटियों से विशेषज्ञों द्वारा तैयार दवाइयां दी जाती है। इसके साथ ही आश्रम परिसर में ही एक चिकित्सालय खोला गया है जिसमें आश्रम के अलावा पोड़ी दल्हा और आसपास के ग्रामीण चिकित्सा हेतु आते हैं। हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशेषज्ञों की टीम चिकित्सा शिविर में अपनी सेवाएं देते हैं।
पोड़ी दल्हा का यह वन प्रांतर अपने औषधीय गुण युक्त पेड़ों पौधों और लताओं के लिए प्रसिद्ध है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से माना जाता है कि दल्हा का यह वन और पहाड़ क्षेत्र जाग्रत है और इसके जाग्रत होने का कारण यहां समय समय पर ॠषियो साधुओं और तपस्वियों का यहां आगमन है। यह वन क्षेत्र तपस्वियों की प्रिय स्थली रहा है। ॠषि मुनियों के चरण कमल से यह क्षेत्र पावन हो गया है। इस क्षेत्र की शांतिपूर्ण वातावरण में साधु-संतों की एकान्त साधना पूर्ण होती थी और यही कारण रहा कि इस वन प्रांतर की जड़ी बूटियों में प्राण बचाने वाली और गंभीर रोगो का शमन करने वाली शक्तियां उपस्थित है।
इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना ने जहां अनेक मौतें हुई वहीं पोड़ी दल्हा और इसके आसपास के क्षेत्रों में कोरोना से मौत शून्य है जिन कुछ लोगों की मौत यहां कोरोना के दौरान हुई है वे पहले से ही गंभीर रोग से पीड़ित थे । अघोर आश्रम में आने वाले ऐसे आसाध्य रोगी भी देखें गये है जो बिस्तर पर लिटाकर लाये गये है और वे यहां से स्वस्थ होकर अपने पैरों पर चलते हुए गये है। अंग्रेजी दवाइयों के दुष्प्रभाव सभी जानते हैं इसलिए अघोर आश्रम द्वारा आयुर्वेद को बढ़ावा दिया जा रहा है इसलिए यहां हर बीमारी के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां दी जाती है।